चित्त क्या है ?



       साधारण से जीव में भी कितनी चीजें होनी चाहिए ? चित्त होना चाहिए। क्या होना चाहिए ? चित्त होना चाहिए। पहले होना चाहिए चित्त। चित्त से स्मृति बनती है। चित्त में संस्कार बनते है। जो तुम जानते हो बुद्धि में वस्तु का ज्ञान उत्पन्न होता है ये बुद्धि में पड़ा नहीं रहता। एक ज्ञान पड़ा रहेगा तो उसमें दूसरा आ ही नहीं सकता। वो नीचे से फिसल जाएगा तब दूसरा आएगा। ये समझो प्रिंटर नहीं होता, प्रिंटर देखा है। उसके नीचे कागज की थप्पी लगी होती है और वो एक पन्ने को उठाता है। उधर से छपके बाहर निकल जाता है। वो कागज अगर उसके अन्दर अटक गया, दूसरा जा नहीं सकता। वहां पर फिर दूसरा प्रिंट नहीं होगा। वैसे जो भी वस्तु का ज्ञान तुम्हें बुद्धि के अन्दर होता है वो ज्ञान चित्त में याद के लिए निकल जाएगा। प्रिंट हो के जैसे कागज निकलता है ना अलग रास्ते से। चित्त में जाकर संस्कार हो के, थप्पी लग के बैठ जाएगा। जरूरत पड़ने पर फिर से ले सकते हो और बुद्धि में अगर जगह खाली होगी तो दूसरा ज्ञान आ के बैठ सकता है ना। घट ज्ञान गया। बुद्धि ज्ञान स्वरूपणी है, घट का ज्ञान हुआ तो घट ज्ञान। वो अगर चित्त में गया तो फिर आएगा पट ज्ञान। वो चित्त में जाएगा तो फिर आएगा मट ज्ञान। तो ये संस्कार को स्टोर करने की जगह चित्त है। संस्कार को, या स्टोर वाला थोड़ा अंग्रेजी हो गया। हिन्दी में जमा करना बोलते है। संस्कारों को जमा करके रखने की जगह है चित्त। कितने भी तुम्हारे बुद्धि में ज्ञान आवे सब जाकर बुद्धि में ही टीकेगें। जब तुम्हें जिसकी-जिसकी जरूरत पड़ेगी, स्मृति मने ज्ञान बनकर के बुद्धि में आएगा, फिर आगे जाएगा। इसका मतलब है बुद्धि, चित्त और होना चाहिए अहंकार। ये तीन के बिना जीव का कभी भी जीवत्व सिद्ध नहीं होता। यद्यपि मन भी है। यहां जरूरत नहीं है। यहां तीन की ही आवश्यकता है इसलिए उसका उल्लेख नहीं किया। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आनंद क्या है ?