दीपावली पूजन कब और कैसे करे ?



       लक्ष्मी की पूजा दीपावली में रात को 12 बजे से लेकर सुबह 4ः30 बजे तक चलती है  उसमें वास्तविक लक्ष्मी की पूजा होती है। सुवर्ण के सिक्के तो रखने ही चाहिए, चांदी के बर्तन होने चाहिए। गाय का दुध होना चाहिए। दुध से बने हुए पकवान होने चाहिए। भगवती लक्ष्मी का अभिषेक करके गोबर के ऊपर लक्ष्मी को रखो। गोबर पर रखी गई जो लक्ष्मी है स्थाई लक्ष्मी मानी जाती है इसलिए घर में गोबर से लीपा जाता है। मार्बल आने के बाद लोग दीवालिया होने लग गए। ये दीवाला जो शब्द है ये पहले नहीें रहा। दीवाली तो पहले भी रही है। गोबर से लीपे हुए घर में लक्ष्मी का निवास होता है। 

       रात को 12 बजे से लेकर 4ः30 बजे तक पूजा करनी चाहिए। घर के खजाने में हर साल 1-1 सिक्के बढ़ाने चाहिए। सुवर्ण का सिक्का पूजा करके रखो, अगले साल 2 करके रखो, अगले साल 3 करो और ये कभी बेचा नही जाता। यहाँ तक कि जिसमें गणेश-लक्ष्मी बने होते है सुनार के पास ले जाओ तो वो भी गलाने को तैयार नहीं होता। सुनार कहता है कि हम देवताओं को नहीं गलाते है। ये आपकी पूंजी बढ़ती चली जाएगी और पूजा ब्राह्मण करेगा। पहले स्नान कराएगा, फिर दूध से स्नान कराएगा, फिर दही से स्नान कराएगा, फिर शक्कर से स्नान कराएगा, शहद से स्नान कराएगा, पंचामृत से स्नान कराएगा। उसके बाद सुगंधित तैल से स्नान, इत्र से स्नान, चन्दन से स्नान और ये सब अच्छी तरह से स्नान कराने के बाद लक्ष्मी को विराजमान करके षोडषोपचार पूजा करेगा। दीपावली में रात 12 बजे सिंह लग्न जब शुरू होता है। सिंह लग्न समाप्त होने तक लक्ष्मी के सामने गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करो। दीपावली में शिव सहस्त्रनाम का पाठ नहीं होता और श्रीसुक्त करो और साथ ही कनकधारा का स्त्रोत्र सिद्ध स्त्रोत्र है का पाठ करो। 

       भगवान आचार्य शंकर  ने किसी एक माता जी के घर में जाकर के भिक्षा मांगा और आचार्य शंकर की सुन्दरता, उनका तेज, उनकी कांति देख वो माता जी रोने लगी। भगवान ने बोला क्यों रो रही है। माता जी बोली आपको अगर मैं भिक्षा देती तो करोड़ों जन्म तक मेरे सामने दारिद्र नहीं आता, लेकिन मेरे पास अभी देने को कुछ नहीं है। भगवान कहने लगे, तू जा घर के अन्दर देख जरूर कुछ न कुछ होगा। भले ही पुराना हो, भले ही सड़ा हुआ हो, भले ही सुखा हो, कोई भी एक चीज लाकर मेरे हाथ में रख दे। उसने देखा अपनी खटिया के नीचे सुखा हुआ पुराना आंवला पड़ा था। वो रोती हुई आचार्य शंकर के हाथ में रख दिया। वो आंवला हाथ में ले लिया और भगवान शंकराचार्य उसके दरवाजे पर बैठ गए और वहीं बैठकर उन्होंने 22 श्लोक वाला एक स्त्रोत्र बनाया, उसका नाम है कनकधारा स्त्रोत्र  और ये बनाके लक्ष्मी की स्तुति करके वहां से आचार्य शंकर गए, वो बेचारी देखती रही, उसके झोपड़ी के ऊपर की छत फट गया, ताल पत्र का था उसके ऊपर से कोई चीज बरसने लगी, धड-धड आवाज आई, वो माई अन्दर जाकर के देखती है पूरे सोने के आंवले से उसका पूरा घर भर गया। इसलिए कनकधारा स्त्रोत्र को भगवान शंकराचार्य का सिद्ध स्त्रोत्र बोलते है। 

       पता नहीं लोग क्या-क्या पढ़ते है। भगवान जाने। जो जरूरत की चीज है उसकी किसी को ज्ञान नहीं है और यदि निष्ठा पूर्वक प्रतिदिन तारों के दिखते-दिखते सुबह जल्दी उठना चाहिए, लोग कहेंगे क्या करें हम तो 1 बजे आते है बाहर से, 2 बजे सोते है। सुबह 9 बजे उठते है। ये तुम्हारा दुर्भाग्य है इसके लिए कोई क्या कर सकता है। तुमको 9 बजे सो जाना चाहिए। 4 बजे उठना चाहिए। उसके स्नान करना चाहिए और स्नान करके बैठकर देवता की आराधना करने का से सबसे बढ़िया ब्रह्म मुहूर्त है और उस समय बैठ करके कनकधारा का पाठ करो।  साल भर नहीं कर सकते तो गोपाल सहस्त्रनाम, कनकधारा और श्रीसुक्त  का लक्ष्मी पूजन के दिन रात को 12 बजे से लेकर के 3ः30 बजे तक सिंह लग्न होता है। उस समय ये पाठ करना चाहिए। 

       दीपावली  वैश्यों का त्यौहार है। होली  शुद्रों का त्यौहार है। लेकिन सारे त्यौहार सब लोग मिलकर मनाते है। सबका विभाजन है अलग-अलग, और ये जो दीपावली धन-लक्ष्मी से परिपूर्ण होने का त्यौहार है। इसमें गाय और गोबर के बिना ये सफल नहीं होता।

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